दोस्तों का ज़िक्र क्या दुश्मन हैं जब बदले हुए
दोस्तों का ज़िक्र क्या दुश्मन हैं जब बदले हुए
शहर में तो अब नज़र आते हैं सब बदले हुए
ज़ीस्त के अदवार कितने मुख़्तलिफ़ से हो गए
साल ओ मह ठहरे हुए और रोज़ ओ शब बदले हुए
किस की दिल-जूई करें किस को मुबारकबाद दें
जब ख़ुशी और ग़म के हूँ यकसर सबब बदले हुए
इक पुराना रास्ता अब किस तरह ढूँडे कोई
शहर भर के सब गली-कूचे हों जब बदले हुए
रोज़ ओ शब की गर्दिशें दिल को बदल पाई नहीं
आईने में गरचे हैं रुख़्सार ओ लब बदले हुए
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