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तमाम उम्र की आवारगी पे भारी है - शबनम रूमानी कविता - Darsaal

तमाम उम्र की आवारगी पे भारी है

तमाम उम्र की आवारगी पे भारी है

वो एक शब जो तिरी याद में गुज़ारी है

सुना रहा हूँ बड़ी सादगी से प्यार के गीत

मगर यहाँ तो इबादत भी कारोबारी है

निगाह-ए-शौक़ ने मुझ को ये राज़ समझाया

हया भी दिल की नज़ाकत पे ज़र्ब-ए-कारी है

मुझे ये ज़ोम कि मैं हुस्न का मुसव्विर हूँ

उन्हें ये नाज़ कि तस्वीर तो हमारी है

ये किस ने छेड़ दिया रुख़्सत-ए-बहार का गीत

अभी तो रक़्स-ए-नसीम-ए-बहार जारी है

ख़फ़ा न हो तो दिखा दें हम आइना तुम को

हमें क़ुबूल कि सारी ख़ता हमारी है

जहाँ-पनाह-ए-मोहब्बत जनाब 'शबनम' हैं

ज़बान-ए-शेर में फ़रमान-ए-शौक़ जारी है

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Rumani. is written by Shabnam Rumani. Complete Poem in Hindi by Shabnam Rumani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.