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संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ - शबनम रूमानी कविता - Darsaal

संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ

संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ

देखिए आइना तो मैं भी हूँ

बैअत-ए-हुस्न की है मैं ने भी

साहब-ए-सिलसिला तो मैं भी हूँ

मुझ पे हँसता है क्यूँ सितारा-ए-सुब्ह

रात भर जागता तो मैं भी हूँ

कौन पहुँचा है दश्त-ए-इम्काँ तक

वैसे पहुँचा हुआ तो मैं भी हूँ

आईना है सभी की कमज़ोरी

तुम ही क्या ख़ुद-नुमा तो मैं भी हूँ

मेरा दुश्मन है दूसरा हर शख़्स

और वो दूसरा तो मैं भी हूँ

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Rumani. is written by Shabnam Rumani. Complete Poem in Hindi by Shabnam Rumani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.