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लम्हों का पथराव है मुझ पर सदियों की यलग़ार - शबनम रूमानी कविता - Darsaal

लम्हों का पथराव है मुझ पर सदियों की यलग़ार

लम्हों का पथराव है मुझ पर सदियों की यलग़ार

मैं घर जलता छोड़ आया हूँ दरिया के उस पार

किस की रूह तआक़ुब में है साए के मानिंद

आती है नज़दीक से अक्सर ख़ुशबू की झंकार

तेरे सामने बैठा हूँ आँखों में अश्क लिए

मेरे तेरे बीच हो जैसे शीशे की दीवार

मेरे बाहर उतनी ही मरबूत है बे-रब्ती

मेरे अंदर की दुनिया है जितनी पुर-असरार

बंद आँखों में काँप रहे हैं जुगनू जुगनू ख़्वाब

सर पर झूल रही है कैसी नादीदा तलवार

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Rumani. is written by Shabnam Rumani. Complete Poem in Hindi by Shabnam Rumani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.