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तब्सिरा यूँ न मिरे हाल पे इतना होता - शबनम नक़वी कविता - Darsaal

तब्सिरा यूँ न मिरे हाल पे इतना होता

तब्सिरा यूँ न मिरे हाल पे इतना होता

उस को नज़दीक से दुनिया ने जो देखा होता

कोई मरते हुए लम्हों का मसीहा होता

कर्ब तन्हाई का एहसास न इतना होता

ये जो आहट की तरह साथ मिरे रहता है

बन के तस्वीर कभी सामने आया होता

दे गया जो मुझे तपते हुए लम्हों का गुदाज़

काश वो दर्द मिरे वास्ते तन्हा होता

मैं कि जैसा हूँ ब-हर-हाल नज़र में आता

मुझ को एहसास की नज़रों से तो देखा होता

ऐसा लगता है दोबारा न मिलेगा मुझ से

इस तरह टूट के वो याद न आया होता

क्या मिला जाग के बतलाईए 'शबनम'-साहब

इस से अच्छा था कोई ख़्वाब ही देखा होता

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Naqvi. is written by Shabnam Naqvi. Complete Poem in Hindi by Shabnam Naqvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.