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नज़्म - शबनम अशाई कविता - Darsaal

नज़्म

पढ़ भी रहे हो

या यूँ ही

मैं अपने वरक़ पलट रही हूँ

किसी भी और सूरत में

मैं तुम्हें

सालिम नहीं मिलूँगी

आख़िरी बार

तुम्हारी हाथ की लकीरें

मुझे छू रही हैं

पहली बार

किसी ख़्वाहिश ने

मुझे सहलाया है

कि मैं तुम्हारे मन में मुजल्लद हूँ

आख़िरी

या

पहले पन्ने के बदन से

कोई लफ़्ज़ फैल भी सकता है

मुझे मेरी मन की क़ब्र में ही

पढ़ लो

नॉवेल नहीं

एक दर्द हूँ मैं

जो ज़िंदगी से

ज़्यादा पथरीला है

दर्द कभी भी तुम्हारे मन से मिल सकता है

बस तूफ़ान का

कोई हलफ़ नहीं उठाना

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In Hindi By Famous Poet Shabnam Ashai. is written by Shabnam Ashai. Complete Poem in Hindi by Shabnam Ashai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.