अगली फ़ोन-कॉल पे
वो तमाम चराग़
बुझ जाते हैं
जो मैं
पहली फ़ोन-कॉल के ब'अद
जलाती हूँ!
चराग़ जलाते जलाते
मैं
अपनी उँगलियाँ भी
जला लेती हूँ
मेरी उँगलियाँ झुलसने का इंदिराज
तुम अपनी
कौन सी फ़ाइल में रख रहे हो
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नज़्म
किन सोचों में डूबे हो
तेरी दुनिया में