नज़्म
लाओ ज़रा पहन लूँ तुम्हें
तन्हाई उतार दी मैं ने
बाहर कॉरीडोर में पड़ी सिसक रही है
अपने धीमे लहजे में
वो सारी दास्तानें सुनाती
जिन्हें सुन कर मैं धीमी आँच पर
पहरों सुलगती थी
लाओ ज़रा पहन लूँ तुम्हें
वो की-होल से झाँक रही है
जैसे हम मौक़ा पाते ही
अपने असल में झाँकते हैं
इस से पहले कि वो
मुझे नंगा देख पाए
लाओ एक दूसरे की अस्ल में
शामिल हो जाएँ
मैं अपनी सारी शबनम
तुम्हारी पलकों पे गिराती हूँ
तुम मेरी साँसों की पगडंडी से
मेरे अंदर उतर आओ
मैं ढक जाऊँगी
अपनी अस्ल की अमाँ पाऊँगी
लाओ ज़रा पहन लूँ तुम्हें
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