नज़्म
तुम ने मुझे इतनी बार मिटा दिया है
कि अब मैं
बिना किसी चेहरे के
जी सकती हूँ
लेकिन कोई मुजस्समा नहीं बन सकती
अगर एक बार भी
तुम मुझे
पढ़ने के ब'अद मिटाते
मैं दुख तराशने की मश्क़
नहीं दोहराती
तुम दूसरों को
दुख देने की सरशारी में
जी सकते हो
मैं बहुत सारे दुख तराश कर
कोई मुजस्समा बना सकती हूँ
एक बार
एक दुख की दुखन
तुम भी ले लो
मुझे किसी
दुख का चेहरा बनाते हुए
लिख लो
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