नज़्म
ज़िंदगी की सिगरेट
तुम्हारे साथ पीने की ख़ातिर
मैं नय अपने सोचने की सलाहियत
तुम्हारे नाम कर दी थी
और वो तमाम मखोटे
तुम्हारे कमरे में सजा दिए थे
जिन्हें तुम नय उमर भर
शिकार किया था
मैं अपनी सारी ख़ुशबुएँ
ख़र्च कर के
तुम्हारा पूरा दर्द ख़रीद रही थी
लेकिन तुम नय आँखों पर ही नहीं
दिमाग़ पर भी पट्टी बाँध रखी थी
सड़क हादसे के ब'अद
मेरा प्लस्तर चढ़ते समय
जो तुम ने एक लम्हे को
अपनी आँखों की पट्टी खोल दी थी
तुम्हारा सर झुक गया था
मुझे मालूम था मैं तुम्हें खो दूँगी
जो खो जाता है
उस के खोने का अफ़सोस गाँठ बन जाता है
मैं अगरचे हिल नहीं सकती थी
सोचने से महरूम नहीं थी
और दुनिया सोचने से इबारत है
मेरी आँखें सूज गई थीं बंद नहीं थीं
और कानों में वो सब आवाज़ें आ रही थीं
जब तुम मेरे हाफ़िज़े के मफ़्लूज हो जाने का एलान कर रहे थे
मैं देख रही थी
लोग तुम्हारी तरफ़ मुतवज्जह हुए थे
लेकिन तुम्हारे दिमाग़ पे लगाई हुइ पट्टी
सब को नज़र आ गई थी
तुम जान लो कि दुनिया सोचने से इबारत है
अब ज़िंदगी की सिगरेट सिर्फ़ मैं पियूँगी
और तुम सिगरेट की राख की तरह
मेरी उँगलियों से झड़ते रहोगे
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