नज़्म
गंधी-पीस-फ़ाउंडेशन के
ऊँची छत वाले कमरे में पड़ी
सोच रही थी
मैं कल ईद कैसे मनाऊँगी?
कि ज़मीन फट गई
भौंचाल इतना तेज़ था
मैं बेड से गिर कर फ़र्श पे आई
बिल्कुल वैसे ही
जैसे पिछली चाँद रात को तुम ने
मेरे हाथों में
चूड़ियाँ चढ़ाते हुए
मुझे फ़र्श पे गिराया था
फिर ईद के दिन भी तुम ने झूट बोला था
और तुम्हारे झूट बोलने पर
सच की ज़बान ज़ब्ह कर के
मैं ने जो क़ुर्बानी दी थी
क्या ईद मनाने के लिए काफ़ी नहीं
ये सोचते हुए
ऊँची छत वाले कमरे में
चाँद रात गुज़र गई
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