सुनो
क्या सच-मुच
नहिं बुलाओगे मुझे
तुम्हारे ग़ाज़ी से
मैं ने कहा था
मौत का इंतिज़ार कर रही हूँ
वो कह रहा था
मौत
मुझ जैसे बद-कारों को आती नहिं
तुम तो सभी को बुलाते हो
मुझे मौत क्यूँ नहिं आएगी
मौला
तुम नय जो जहन्नम भी बनाई है
मैं
तुम्हारे बंदों की बनाई हुइ
जन्नत में
कब तक ठहरूँ?