मुझ को भी कर देगा रुस्वा वो ज़माने भर में
ख़ुद भी हो जाएगा बदनाम यही लगता है
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(709) Peoples Rate This
ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए
हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
मेरे आने की ख़बर सुन के वो दौड़ा आता
इक यही सोच बिछड़ने नहीं देती तुझ से
अगर बिछड़ने का उस से कोई मलाल नहीं
लौट आएगा किसी शाम यही लगता है
मैं हाथ बाँधे हुए लौट आई हूँ घर में
है कोई दर्द मुसलसल रवाँ-दवाँ मुझ में
उसी के क़ुर्ब में रह कर हरी भरी हुई है