मैं हाथ बाँधे हुए लौट आई हूँ घर में
कि मेरे पर्स में इक आरज़ू मरी हुई है
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(590) Peoples Rate This
अगर बिछड़ने का उस से कोई मलाल नहीं
मुझ को भी कर देगा रुस्वा वो ज़माने भर में
है कोई दर्द मुसलसल रवाँ-दवाँ मुझ में
हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ
इक महकते गुलाब जैसा है
ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए
ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था
मेरे आने की ख़बर सुन के वो दौड़ा आता
लौट आएगा किसी शाम यही लगता है
इक यही सोच बिछड़ने नहीं देती तुझ से