ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
रौशनी हो तो उन्हें लोग बुझाने लग जाएँ
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(701) Peoples Rate This
हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
लौट आएगा किसी शाम यही लगता है
अगर बिछड़ने का उस से कोई मलाल नहीं
उसी के क़ुर्ब में रह कर हरी भरी हुई है
इक महकते गुलाब जैसा है
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था
मुझ को भी कर देगा रुस्वा वो ज़माने भर में
ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए
मैं हाथ बाँधे हुए लौट आई हूँ घर में
मेरे आने की ख़बर सुन के वो दौड़ा आता