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आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़ - शबाब कविता - Darsaal

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

आशिक़ की जान जाती है इस बाँकपन को छोड़

ऐ बुत ख़ुदा के वास्ते अपने चलन को छोड़

बुलबुल न रहम आएगा सय्याद को कभी

है जान अगर अज़ीज़ तो तू इस चमन को छोड़

उस का यही तरीक़ रहा आशिक़ों के साथ

ऐ दिल बस अब शिकायत-ए-चर्ख़-ए-कुहन को छोड़

सहरा की सम्त पाँव बढ़े जाते हैं दिल आ

वहशत पुकारती है कि हुब्बुलवतन को छोड़

बसने को चल तू दश्त-ए-ख़िज़ाँ-दीदा में 'शबाब'

गुलज़ार में बहार-ए-गुल-ओ-नस्तरन को छोड़

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In Hindi By Famous Poet Shabab. is written by Shabab. Complete Poem in Hindi by Shabab. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.