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हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है - शबाब ललित कविता - Darsaal

हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है

हद्द-ए-सितम न कर कि ज़माना ख़राब है

ज़ालिम ख़ुदा से डर कि ज़माना ख़राब है

इतना न बन-सँवर कि ज़माना ख़राब है

मैली नज़र से डर कि ज़माना ख़राब है

बहना पड़ेगा वक़्त के धारे के साथ साथ

बन उस का हम-सफ़र कि ज़माना ख़राब है

फिसलन क़दम क़दम पे है बाज़ार-ए-शौक़ में

चल देख-भाल कर कि ज़माना ख़राब है

कुछ उन पे ग़ौर कर जो तक़ाज़े हैं वक़्त के

उन से निबाह कर कि ज़माना ख़राब है

आ ग़र्क़-ए-जाम कर दें मिले हैं जो रंज-ओ-ग़म

पैमाना मेरा भर कि ज़माना ख़राब है

गर बे-ठिकाना हैं तो नहीं शर्मसार हम

अब क्या बनाएँ घर कि ज़माना ख़राब है

मेहनत शुऊर तजरबा तालीम-ओ-तर्बियत

सब कुछ है बे-असर कि ज़माना ख़राब है

दो रोटियाँ नहीं न सही एक ही सही

इस पर ही सब्र कर कि ज़माना ख़राब है

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In Hindi By Famous Poet Shabab Lalit. is written by Shabab Lalit. Complete Poem in Hindi by Shabab Lalit. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.