तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते
वर्ना हम को भी तमन्ना थी कि चाहे जाते
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जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ
इक तमन्ना कि सहर से कहीं खो जाती है
ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ
इतना ही नहीं है कि तिरे बिन न रहा जाए
ऐ दिल अब और कोई क़िस्सा-ए-दुनिया न सुना
मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर
दुनिया ही की राह पे आख़िर रफ़्ता रफ़्ता आना होगा
वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ
निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के
वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने
जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है