बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
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जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है
वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ
तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते
रू भी अक्स-ए-रू भी मैं
उम्मीद के उफ़ुक़ से न उट्ठा ग़ुबार तक
ईमा-ए-ग़ज़ल करती हैं मौसम की अदाएँ
चुप है वो मोहर-ब-लब मैं भी रहूँ अच्छा है
पाई न कोई मंज़िल पहुँचीं न कहीं राहें
वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़
फ़ित्ने जो कई शक्ल-ए-करिश्मात उठे हैं
हर-चंद कि साग़र की तरह जोश में रहिए