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वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़ - शानुल हक़ हक़्क़ी कविता - Darsaal

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

दिल किसी और तरफ़ है तो ज़बाँ और तरफ़

हैं अभी अहल-ए-हवस सूद-ओ-ज़ियाँ के ही असीर

फेरते हैं यूँही बातों से गुमाँ और तरफ़

आह-ए-सोज़ाँ को मिरी देख न देखा होगा

कि हवा और तरफ़ की हो धुआँ और तरफ़

रुख़ रहा ता-ब-सहर और ही जानिब अपना

और था मतला-ए-अनवार-फ़शाँ और तरफ़

बैठ कर रू-ब-क़ज़ा ख़ुश हैं कि गोया हम ने

मोड़ डाली है ज़माने की इनाँ और तरफ़

यूँ पलट जाती हैं हर लहज़ा वो नज़रें जैसे

जोड़ कर तीर को खिंचती है कमाँ और तरफ़

चाहिए बाग़ को बस एक लहू का छींटा

आन की आन में जाती है ख़िज़ाँ और तरफ़

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In Hindi By Famous Poet Shaanul Haq Haqqi. is written by Shaanul Haq Haqqi. Complete Poem in Hindi by Shaanul Haq Haqqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.