ऐ दिल अब और कोई क़िस्सा-ए-दुनिया न सुना
वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़
इक महक सी दम-ए-तहरीर कहाँ से आई
जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ
चुप है वो मोहर-ब-लब मैं भी रहूँ अच्छा है
नग़्मा यूँ साज़ में तड़पा मिरी जाँ हो जैसे
बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
वही इक फ़रेब हसरत कि था बख़्शिश-ए-निगाराँ
ऐ दिल तिरे ख़याल की दुनिया कहाँ से लाएँ
मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर
नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे
ईमा-ए-ग़ज़ल करती हैं मौसम की अदाएँ