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निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के - शानुल हक़ हक़्क़ी कविता - Darsaal

निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के

निकले तिरी दुनिया के सितम और तरह के

दरकार मिरे दिल को थे ग़म और तरह के

तुम और तरह के सही हम और तरह के

हो जाएँ बस अब क़ौल-ओ-क़सम और तरह के

बुत-ख़ाने का मंज़र ब-ख़ुदा आज ही देखा

थे मेरे तसव्वुर में सनम और तरह के

करती हैं मिरे दिल से वो ख़ामोश निगाहें

कुछ रम्ज़ इशारों से भी कम और तरह के

ग़म होते रहे दिल में कम-ओ-बेश व-लेकिन

बेश और तरह के हुए कम और तरह के

मायूस तलब जान के इस दश्त-ए-हवस में

यारों ने दिए हैं मुझे दम और तरह के

रहती है किसी और तरफ़ आस नज़र की

हैं वक़्त के हाथों में अलम और तरह के

रहबर का तो अंदाज़-ए-क़दम और ही कुछ था

हैं क़ाफ़िले वालों के क़दम और तरह के

कुछ और हैं उस हुस्न-ए-बसंती की अदाएँ

हैं नाज़ निगारान-ए-अजम और तरह के

कहते हो कि फीकी सी रूनखी सी हैं ग़ज़लें

लो शेर सुनाएँ तुम्हें हम और तरह के

ये किस ने किया याद कहाँ जाते हो 'हक़्क़ी'

कुछ आज तो पड़ते हैं क़दम और तरह के

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In Hindi By Famous Poet Shaanul Haq Haqqi. is written by Shaanul Haq Haqqi. Complete Poem in Hindi by Shaanul Haq Haqqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.