कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
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Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ
वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा
उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठा
नहीं है इंसानियत के बारे में आज भी ज़ेहन साफ़ जिन का
तुम सलामत रहो क़यामत तक
होंटों पर महसूस हुई है आँखों से मादूम रही है
कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से
जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया
शॉफ़र
क़दम सँभल के बढ़ाओ कि रौशनी कम है
कौन बुतों से रिश्ता जोड़े