जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से
कोई बयान करे मेरी दास्ताँ होगी
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देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा
होंटों पर महसूस हुई है आँखों से मादूम रही है
चमन को आग लगाने की बात करता हूँ
खरी बातें ब-अंदाज़-ए-सुख़न कह दूँ तो क्या होगा
ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ
क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या
तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गए
उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठा
सितम-गर को मैं चारा-गर कह रहा हूँ
औरत