वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा
वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा
हाथ फूलों पे भी रख्खोगे तो जल जाएगा
जिस को महफ़िल से निकालो गे निकल जाएगा
मगर अदबार तो अदबार है टल जाएगा
कहीं फ़ितरत के तक़ाज़े भी बदल सकते हैं
घास पर शेर जो पालोगे तो पल जाएगा
कह दिया था कि ये रहबर जो चुना है तुम ने
साफ़ तोते की तरह आँख बदल जाएगा
वो बदलते हुए माहौल का साँचा ही सही
कोई सिक्का तो नहीं ज़ेहन कि ढल जाएगा
सुब्ह-ए-मायूस-ए-गुलिस्ताँ की क़सम फिर कहिए
बाग़बानों के दिमाग़ों से ख़लल जाएगा
मय-कदे आ के वो इंसान बनें या न बनें
हज़रत-ए-शैख़ का ईमान सँभल जाएगा
सितम-ओ-ज़ुल्म की टहनी भी नहीं फल सकती
आप ने बाग़ लगाया है तो फल जाएगा
फ़र्ज़ हैं हम पे बयानात-ए-बसीरत ऐ 'शाद'
जिस की क़िस्मत में सँभलना है सँभल जाएगा
(625) Peoples Rate This