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क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या - शाद आरफ़ी कविता - Darsaal

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या

क्या तवक़्क़ो' इंक़लाब-ए-नौ निज़ाम आया तो क्या

अब ये तासीर-ए-मोहब्बत पर क़सीदा क्या ज़रूर

जज़्बा-ए-बेताबी-ए-दिल था जो काम आया तो क्या

आँख से दिल की तरफ़ दौड़े वो मय पीते हैं हम

हम वो मय-कश हैं कि साक़ी ले के जाम आया तो क्या

ज़ोफ़ अपना तोड़ने देता है ज़ंजीरें कहीं

हम में दम क्या है जो वक़्त-ए-इंतिक़ाम आया तो क्या

मैं समझता हूँ उसे आग़ाज़-ए-मुस्तक़बिल-फ़ज़ा

आप कहते हैं कोई बाला-ए-बाम आया तो क्या

अब वो इज़हार-ए-हक़ीक़त के लिए डरते नहीं

अब वो कहते हैं ख़त उस का मेरे नाम आया तो क्या

है तो ना-एहसाँ-शनासी 'शाद' लेकिन क्या करूँ

काम बन सकता था यूँ भी कोई काम आया तो क्या

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In Hindi By Famous Poet Shaad Aarfi. is written by Shaad Aarfi. Complete Poem in Hindi by Shaad Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.