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जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ - शाद आरफ़ी कविता - Darsaal

जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ

जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ

आता है उन्हें ग़ुस्सा आए होते हैं वो बरहम हो जाएँ

दुनिया-ए-मसर्रत के लम्हे अब इस से क्या कम हो जाएँ

होंटों पर हँसी आने वाली हो आँखें पुर-नम हो जाएँ

हम उस के आँख से ओझल होने का मतलब क्या लेते हैं

वो आँख से ओझल हो तो नज़ारे दरहम-बरहम हो जाएँ

हालात को हर हर मौक़ा पर इक भेस बदलना लाज़िम है

काँटों में दामन बन जाएँ फूलों पर शबनम हो जाएँ

उस काफ़िर ऐसी मस्ताना रफ़्तार कहाँ से लाएँगे

अशआर मुजस्सम हो जाएँ अफ़्कार मुनज़्ज़म हो जाएँ

उन की रहमत से दूर नहीं लेकिन इस पर मजबूर नहीं

इग़्माज़ करें हर लग़्ज़िश पर सज्दों पर बरहम हो जाएँ

अहबाब को ऐसे गुलशन में फ़ित्ने बौने से क्या हासिल

जब दो दिल मोहकम हो जाएँ जब वादे पैहम हो जाएँ

उस वक़्त भी ज़ोहद-ओ-तक़्वा पर क़ाएम रह जाऊँ तब कहना

जिस वक़्त मुझे मय-नोशी के अस्बाब फ़राहम हो जाएँ

समझो कि जवानी ख़्वाब में है रुख़ बाँहों की मेहराब में है

जब तारे धीमे पड़ जाएँ जब शमएँ मद्धम हो जाएँ

उन ख़्वाब-आलूदा आँखों की तरकीब समझ में आ जाए

ऐ 'शाद' अगर पैमानों में मय-ख़ाने मुदग़म हो जाएँ

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In Hindi By Famous Poet Shaad Aarfi. is written by Shaad Aarfi. Complete Poem in Hindi by Shaad Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.