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चमन को आग लगाने की बात करता हूँ - शाद आरफ़ी कविता - Darsaal

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

समझ सको तो ठिकाने की बात करता हूँ

सहर को शम् जलाने की बात करता हूँ

ये ग़ाफ़िलों को जगाने की बात करता हूँ

रविश रविश पे बिछा दो बबूल के काँटे

चमन से लुत्फ़ उठाने की बात करता हूँ

वो बाग़बान जो पौदों से बैर रखता है

ये आप ही के ज़माने की बात करता हूँ

शराब-ए-सुर्ख़ की मौजों से मुद्दआ' होगा

अगर मैं ख़ून बहाने की बात करता हूँ

वो सिर्फ़ अपने लिए जाम कर रहे हैं तलब

मैं हर किसी को पिलाने की बात करता हूँ

यहाँ चराग़ तले लूट है अँधेरा है

कहाँ चराग़ जलाने की बात करता हूँ

इस अंजुमन से उठा हूँ खरी खरी कह कर

फिर अंजुमन में न आने की बात करता हूँ

दबी ज़बाँ से गुज़ारिश है नागवार अगर

तो क्या सवाल उठाने की बात करता हूँ

नक़ाब-ए-रू-ए-ज़माना न उठ सकेगी कि मैं

गुलों से ओस उठाने की बात करता हूँ

घिसे होऊँ को नई फ़िक्र दे रहा हूँ 'शाद'

मंझे होऊँ को सिखाने की बात करता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Shaad Aarfi. is written by Shaad Aarfi. Complete Poem in Hindi by Shaad Aarfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.