शाद आरफ़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाद आरफ़ी
नाम | शाद आरफ़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shaad Aarfi |
जन्म की तारीख | 1900 |
मौत की तिथि | 1964 |
तुम सलामत रहो क़यामत तक
शैख़ पर हाथ उठाने के नहीं हम क़ाएल
'शाद' ग़ैर-मुमकिन है शिकवा-ए-बुताँ मुझ से
रंग लाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिन
रफ़्ता रफ़्ता मेरी अल-ग़रज़ी असर करती रही
नहीं है इंसानियत के बारे में आज भी ज़ेहन साफ़ जिन का
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से
जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से
जब चली अपनों की गर्दन पर चली
देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
शॉफ़र
औरत
ज़ब्त-ए-नावक-ए-ग़म से बात बन तो सकती है
वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा
उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठा
तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गए
सितम-गर को मैं चारा-गर कह रहा हूँ
'शाद' उफ़्ताद-ए-हर-नफ़स मत पूछ
क़दम सँभल के बढ़ाओ कि रौशनी कम है
मुस्तक़बिल रौशन-तर कहिए
मयस्सर जिन की नज़रों को तिरे गेसू के साए हैं
क्या करें गुलशन पे जोबन ज़ेर-ए-दाम आया तो क्या
खरी बातें ब-अंदाज़-ए-सुख़न कह दूँ तो क्या होगा
कौन बुतों से रिश्ता जोड़े
कहता है बाग़बान लिहाज़ा न चाहिए
कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगी
जो भी अपनों से उलझता है वो कर क्या लेगा
जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया
जब तक हम हैं मुमकिन ही नहीं ना-महरम महरम हो जाएँ