मेरी क़िस्मत से क़फ़स का या तो दर खुलता नहीं
मेरी क़िस्मत से क़फ़स का या तो दर खुलता नहीं
दर जो खुलता है तो बंद-ए-बाल-ओ-पर खुलता नहीं
आह करता हूँ तो आती है पलट कर ये सदा
आशिक़ों के वास्ते बाब-ए-असर खुलता नहीं
एक हम हैं रात भर करवट बदलते ही कटी
एक वो हैं दिन चढ़े तक जिन का दर खुलता नहीं
रफ़्ता रफ़्ता ही नक़ाब उट्ठेगी रू-ए-हुस्न से
वो तो वो है एक दम कोई बशर खुलता नहीं
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