सब कहीं पीछे छूट-छाट गए
सब कहीं पीछे छूट-छाट गए
वो ज़माने वो ठाट-बाट गए
कौन तोलेगा तुझ को फूलों में
वो तराज़ू गई वो बाट गए
हम से अच्छे रहे हमारे बुज़ुर्ग
ज़िंदगी सादगी से काट गए
अब रहा क्या है इन किताबों में
काम की बातें लोग चाट गए
फिर कहीं भी ये जी लगा ही नहीं
हम तो जाने को घाट घाट गए
प्यास अपनी बुझा के पागल लोग
सब कुएँ रास्ते के पाट गए
जाने किस के हिसाब में 'आलम'
रातें बोझल तो दिन सपाट गए
(687) Peoples Rate This