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टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से - सीमाब ज़फ़र कविता - Darsaal

टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से

टलने के नहीं अहल-ए-वफ़ा ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ से

ये बहस मगर कौन करे अहल-ए-ज़माँ से

रग रग में रवाँ बहर-ए-फ़ुग़ाँ चढ़ गया लेकिन

वीरानी-ए-जाँ कम तो हुई ज़िक्र-ए-बुताँ से

रोग़न न सफ़ेदी न मरम्मत से मिलेगा

इक पास-ए-मरातिब कि गया सब के मकाँ से

आज़ार-ओ-मुसीबत से इलाक़ा है पुराना

रिश्ता है क़दीमी मिरा फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ से

घाव भी ज़रा ताक के यारों ने लगाए

कुछ दिल को भी निस्बत थी बहुत नोक-ए-सिनाँ से

इक गोशा-ए-दिल उस को दिखाने का नहीं ये

महरम नहीं करना उसे इक सिर्र-ए-निहाँ से

सरसब्ज़ रहे ज़ख़्म-ए-जुनूँ जिस की बदौलत

इक रब्त तो क़ाएम है अदू-ए-दिल-ओ-जाँ से

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In Hindi By Famous Poet Seemab Zafar. is written by Seemab Zafar. Complete Poem in Hindi by Seemab Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.