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खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान - सीमाब ज़फ़र कविता - Darsaal

खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान

खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान

अपना अपना मंदिर मिम्बर अपने रब भगवान

घर जाने की कोई दूजी राह निकाली जाए

आन के रह में बैठ गया है इक जोगी अंजान

ज़ख़्मी सूरज ज़हर में भीगी लो प्यासे पंछी

टूटी बिखरी हिज्र-गली में कुछ शाख़ें बे-जान

अपने दुख का घूँट गला और यार के आँसू ओढ़

उन आँखों के दर्द से बढ़ कर क्या होगा नुक़सान

सिसकी को बहला लेना हिचकी को सहलाना

उम्र गँवा कर मिलता है ये फ़न मेरे नादान

ख़ामोशी की कठिनाई में चुप की बिपता में

उस आवाज़ का शहद घुले तो मिल जाए निरवान

जाना देख आना कुछ रंग अभी बहता होगा

शहर के चौराहे में कल इक ख़्वाब हुआ क़ुर्बान

ऊँचे नीचे दाएँ बाएँ मिट्टी के टीले

आशाओं के सर्द बदन भीतर का क़ब्रिस्तान

आयत आयत नूर का पैकर हर्फ़ हर्फ़ महकार

दो 'सीमाब' सिफ़त होंटों पर थी सूरा रहमान

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In Hindi By Famous Poet Seemab Zafar. is written by Seemab Zafar. Complete Poem in Hindi by Seemab Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.