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ख़िरद के जुमला दसातीर से मुकरते हुए - सीमाब ज़फ़र कविता - Darsaal

ख़िरद के जुमला दसातीर से मुकरते हुए

ख़िरद के जुमला दसातीर से मुकरते हुए

फिर आज दिल से लगा बैठे नाम बरते हुए

सदाएँ दो कि कोई कारवान-ए-ग़म ठहरे

हमें तो रास न आएँगे दिन सँवरते हुए

जो महव-ए-रक़्स रहे रंग-ओ-नूर के चौ गिर्द

बिखर गए हैं तिरी लौ का तौफ़ करते हुए

वो तख़्त-ए-जाँ था जहाँ तेरी ताज-पोशी की

सो किस जिगर से तुझे देख लूँ उतरते हुए

हुआ था हुक्म-ए-सफ़र दिल मगर था रू-गर्दां

सो रह में बैठ रहे दिल पे दोश धरते हुए

तुम्हारे नाम के हिज्जे सँवार कर उस में

अब अपना नाम मिलाएँगे रंग भरते हुए

जुनूँ पे ता'न करें पारसाई के वाइज़

हवस के कूचा-ए-रंगीन से गुज़रते हुए

सहर क़रीब हुई आओ आँख में भर लें

ये पारा पारा तमन्नाएँ ख़्वाब मरते हुए

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In Hindi By Famous Poet Seemab Zafar. is written by Seemab Zafar. Complete Poem in Hindi by Seemab Zafar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.