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हुस्न-ए-फ़ानी पर हम अपना दिल फ़िदा करते रहे - सीमाब बटालवी कविता - Darsaal

हुस्न-ए-फ़ानी पर हम अपना दिल फ़िदा करते रहे

हुस्न-ए-फ़ानी पर हम अपना दिल फ़िदा करते रहे

अब पशेमाँ हैं कि सारी उम्र क्या करते हैं

हम समझते हैं जनाब-ए-शैख़ क्या करते रहे

हूर-ओ-ग़िल्माँ के लिए याद-ए-ख़ुदा करते रहे

ज़ब्त-ए-गिर्या ज़ब्त-ए-नाला ज़ब्त-ए-फ़र्याद-ओ-फ़ुगाँ

इश्क़ में जो कुछ भी हम से हो सका करते रहे

किस तरह सोए पड़े हैं चैन से ज़ेर-ए-मज़ार

जो ज़मीं पर हर घड़ी महशर बपा करते रहे

सच अगर पूछो तो हम काफ़िर भी हैं मोमिन भी हैं

बुत-कदा में बैठ कर याद-ए-ख़ुदा करते रहे

मौत ही आख़िर इलाज-ए-कारगर साबित हुई

दर्द-ए-दिल बढ़ता रहा जूँ जूँ दवा करते रहे

अहल-ए-हिम्मत ने तो ऐ 'सीमाब' मंज़िल मार ली

हम मगर हिरमाँ-नसीबी का गिला करते रहे

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In Hindi By Famous Poet Seemab Batalvi. is written by Seemab Batalvi. Complete Poem in Hindi by Seemab Batalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.