शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
शुक्रिया हस्ती का! लेकिन तुम ने ये क्या कर दिया
पर्दे ही पर्दे में अपना राज़ इफ़शा कर दिया
माँग कर हम लाए थे अल्लाह से इक दर्द-ए-इश्क़
वो भी अब तक़दीर ने औरों का हिस्सा कर दिया
दो ही अंगारे थे हाथों में ख़ुदा-ए-इश्क़ के
एक को दिल एक को मेरा कलेजा कर दिया
जब तजल्ली उन की बर्क़-अर्ज़ानियों पर आ गई
आबले से दिल के पैदा तूर-ए-सीना कर दिया
अपनी इस वारफ़तगी-ए-शौक़ का मम्नून हूँ
बार-हा मुझ को भरी महफ़िल में तन्हा कर दिया
वाक़िआत-ए-इश्क़ का था लम्हा लम्हा इक सदी
हर नफ़स में मैं ने इक अरमान पूरा कर दिया
मर्हमत फ़रमा के ऐ 'सीमाब' ग़म की लज़्ज़तें
ज़ीस्त की तल्ख़ी को फ़ितरत ने गवारा कर दिया
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