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मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा - सीमाब अकबराबादी कविता - Darsaal

मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा

मुरत्तब हो के इक महशर ग़ुबार-ए-दिल से निकलेगा

नया इक कारवाँ गर्द-ए-रह-ए-मंज़िल से निकलेगा

हमारे मुँह से और शिकवा तुम्हारा हो नहीं सकता

तुम्हारा नाम भी शायद बड़ी मुश्किल से निकलेगा

न होगा गोशा-ए-दामन मिरा वाबस्ता-ए-मंज़िल

न जब तक हाथ तेरा पर्दा-ए-मंज़िल से निकलेगा

मिरी आँखें हैं बज़्म-ए-रंग-ओ-बू में मुंतज़िर तेरी

नहीं मालूम तू कब तक हिजाब-ए-दिल से निकलेगा

मैं अपने दिल को यूँ पेश-ए-नज़र 'सीमाब' रखता हूँ

कि मेरा चाँद जब निकला इसी मंज़िल से निकलेगा

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In Hindi By Famous Poet Seemab Akbarabadi. is written by Seemab Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Seemab Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.