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ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए - सीमाब अकबराबादी कविता - Darsaal

ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए

ख़त्म इस तरह नज़ा-ए-हक़-ओ-बातिल हो जाए

इक तरफ़ दोनों जहाँ एक तरफ़ दिल हो जाए

दिल में वो शोरिश-ए-जज़्बात वो गर्मी न रही

अब ये शायद निगह-ए-दोस्त के क़ाबिल हो जाए

जानता हूँ कि वफ़ा जी से गुज़रना है मगर

यूँ न दे तअन कि जीना मुझे मुश्किल हो जाए

दो-जहाँ तर्क-ए-मोहब्बत में किए तेरे लिए

और बेज़ार जो तुझ से भी मिरा दिल हो जाए

क़द्र-ए-इंसाँ है अभी बज़्म-ए-अदम में 'सीमाब'

क्यूँ वो दुनिया में रहे जो किसी क़ाबिल हो जाए

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In Hindi By Famous Poet Seemab Akbarabadi. is written by Seemab Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Seemab Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.