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कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है - सीमाब अकबराबादी कविता - Darsaal

कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है

कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है

तिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है

ये वीरानी तसव्वुर की वो रंगीनी ख़यालों की

कभी महफ़िल में ख़ल्वत है कभी ख़ल्वत में महफ़िल है

वो आईना हो या हो फूल तारा हो कि पैमाना

कहीं जो कुछ भी टूटा मैं यही समझा मिरा दिल है

उजाला हो तो ढूँडूँ दिल भी परवानों की लाशों में

मिरी बर्बादियों को इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-महफ़िल है

वो दिल ले कर हमें बे-दिल न समझें उन से कह देना

जो हैं मारे हुए नज़रों के उन की हर नज़र दिल है

वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सरगश्ता-ए-तसनीम-ओ-जन्नत हो

मयस्सर जिस को सैर-ए-ताज है जमुना का साहिल है

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In Hindi By Famous Poet Seemab Akbarabadi. is written by Seemab Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Seemab Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.