दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
इक आईना था टूट गया देख-भाल में
दुनिया करे तलाश नया जाम-ए-जम कोई
उस की जगह नहीं मिरे जाम-ए-सिफ़ाल में
आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में
दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में
अहल-ए-चमन हमें न असीरों का तअन दें
वो ख़ुश हैं अपने हाल में अहम अपनी चाल में
'सीमाब' इज्तिहाद है हुस्न-ए-तलब मिरा
तरमीम चाहता हूँ मज़ाक़-ए-जमाल में
(1440) Peoples Rate This