छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
निगाह-ए-यास हो जाती है दिल की तर्जुमाँ फिर भी
ग़म-ए-वामाँदगी से बे-नियाज़-ए-होश बैठा हूँ
चली आती है आवाज़-ए-दरा-ए-कारवाँ फिर भी
हिजाब-अंदर-हिजाब अमवाज-ए-तूफ़ान-ए-तजल्ली हैं
फ़रोग़-ए-शम'अ से परवाना है आतिश-बजाँ फिर भी
इशारों से निगाहों से बहुत कुछ मनअ करता हूँ
क़फ़स ही पर झुकी पड़ती है शाख़-ए-आशियाँ फिर भी
बहुत दिलचस्प है 'सीमाब' शाम-ए-वादी-ए-ग़ुर्बत
वतन की सुब्ह में कुछ और थीं रंगीनियाँ फिर भी
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