चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा
चाँद ख़ुद को देख कर शरमाएगा
बादलों की ओट में छुप जाएगा
यूँ उदासी में न तू इस को गुज़ार
उम्र भर इस शाम को पछताएगा
आँख खुलते ही वो ढूँढेगा मुझे
ख़्वाब ऐसा उस को मेरा आएगा
चल तू कितना भी सलीक़े से मगर
रास्तों में ठोकरें तो खाएगा
रौंदता है आज जो इस ख़ाक को
एक दिन वो ख़ाक में मिल जाएगा
गुनगुना के देख तू भी ये ग़ज़ल
लय में इस की डूबता ही जाएगा
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