मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
कम से कम ये तो मिरे चाहने वाले करते
Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
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मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
डिकलाइन
बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
शिकायत
सर्द होते हुए वजूद में बस
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है