मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है
उस ने ये सुन के आज मिरा घर जला दिया
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परिंदा
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
सर्द होते हुए वजूद में बस
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
डिकलाइन
ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
शिकायत
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर