मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
वो अपनी ज़ात से बाहर कहीं मिले तो सही
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परिंदा
शिकायत
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
डिकलाइन
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर