ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
अभी कोसों मुझे चलना पड़ेगा
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ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
सर्द होते हुए वजूद में बस
परिंदा
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
शिकायत
डिकलाइन
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस