ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
जिन पे मैं आज तक नहीं रोई
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बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
मुझ को उस के नहीं ख़ुद मेरे हवाले करते
सर्द होते हुए वजूद में बस
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
डिकलाइन
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
जज़्बों पर जब बर्फ़ जमे तो जीना मुश्किल होता है
इक क़यामत का घाव आँखें थीं
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर