बहुत सफ़्फ़ाक हो तुम भी
मोहब्बत ऐसे करते हो
कि जैसे घर के पिंजरे में
परिंदा पाल रक्खा हो
Mohsin Naqvi
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बे-क़रारी से मिरे पास वो आया लेकिन
सर्द होते हुए वजूद में बस
ख़ुद अपने-आप से मिलने की ख़ातिर
शिकायत
एक आवाज़ मैं ने सुनी थी अभी कौन बोला था ये तो ख़बर ही नहीं
ऐसे कुछ हादसे भी गुज़रे हैं
मैं एक रोज़ उसे ढूँड कर तो ले आऊँ
मैं ने कहा था मुझ को अँधेरे का ख़ौफ़ है
हद से बढ़ने लगी जब मेरी घुटन तो देखा
परिंदा
हमारे सानेहे हम को सुना रहे क्यूँ हो
बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस