Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1b3037af47a48705c29daefb0b8f7914, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
डिकलाइन - सीमा ग़ज़ल कविता - Darsaal

डिकलाइन

मैं जीने की तमन्ना ले के उठती हूँ

मगर जब दिन गुज़रता है

सुनहरी धूप की किरनें किसी दरिया किनारे पर उतरती शाम के बिखरे हुए चमकीले बालों से लिपट कर सोने लगती हैं

हवा बेज़ार हो कर फिर थके पंछी की बाँहों में सिमट कर बैठ जाती है

ज़मीं का शोर भी तब रफ़्ता रफ़्ता मांद पड़ता है

फ़लक के आख़िरी कोने पे जिस दम कुछ स्याही झिलमिलाती है

सितारे सुरमई से आसमानों की बिछी चादर पे ऐसे बैठ जाते हैं

कि जैसे डूबते सूरज की मय्यत पर सिपारे पढ़ने आए हों

तभी एहसास होता है कि गोया ज़िंदगी बस एक दिन की थी

(526) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Seema Ghazal. is written by Seema Ghazal. Complete Poem in Hindi by Seema Ghazal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.