मस्जिद को मत जाया कर
मुझ को पास बिठाया कर
मुझ से प्यार की बोली बोल
मेरे लब से रोज़ा खोल
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अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ
सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे